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ना'त-ओ-मनक़बत
रहमतों वाले नबी ख़ैर-उल-वरा का तज़्किराकीजिए हर वक़्त महबूब-ए-ख़ुदा का तज़्किरा
अ'ब्दुल सत्तार नियाज़ी
ना'त-ओ-मनक़बत
हाफ़िज़ हबीब अ'ली शाह
फ़ारसी कलाम
वश्शमस चे बाशद सिफ़त-ए-वज्ह-ए-शरीफ़शवल्लैल चे बाशद सिफ़त-ए-मू-ए-मोहम्मद
अमीर हसन अला सिज्ज़ी
ग़ज़ल
रहा करता है अक्सर तज़्किरा बर्बादी-ए-दिल कामैं बिगड़ा हूँ तो अफ़्साना बना हूँ उन की महफ़िल का
अफ़सर सिद्दीक़ी अमरोहवी
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ग़ज़ल
अज़ीज़ सफ़ीपुरी
ना'त-ओ-मनक़बत
जो शाह-ए-मदीना को लज-पाल समझते हैंदामान-ए-तलब भर कर महफ़िल से वो जाते हैं
अ'ब्दुल सत्तार नियाज़ी
फ़ारसी कलाम
चूँ साहिब-ए-मक़ाम-ए-नबी-ओ-अलीस्त ऊहम फ़ख़्र-ए-औलिया शुद-ओ-हम शान-ए-औलिया
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
ना'त-ओ-मनक़बत
ऐ शाफ़े-ए'-रोज़-ए-जज़ा सल्लू-’अलैहि-व’आलिहिवे वाक़िफ़-ए-राज़-ए-ख़ुदा सल्लू-’अलैहि-व’आलिहि
अब्दुल करीम मुख़्लिस
ना'त-ओ-मनक़बत
माँगना जुर्म नहीं 'इश्क़-ए-नबी की दौलत'इश्क़ है दिल में तो फिर हुस्न-ए-नज़र भी माँगो
अ'ब्दुल सत्तार नियाज़ी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
गरचे दारम ख़िर्क़ः-ए-बोसीदः-तर बर दोश-ए-मनचूँ गदा-ए-शेर-ए-यज़्दाँ शौकत-ए-शाहानः-अम